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भाई जी श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार उस परमोच्चभागवती स्थिति में पहुंच गए थे| जहां पहुंचे हुए व्यक्ति के जीवन, अस्तित्व, उसके दर्शन, स्पर्श एवं संभाषण से साधकों का ही नहीं जगत का परम मंगल होता है| जनता के मानस पटल पर उनके मधुर व्यक्तित्व का इतना अधिकार हो गया था कि लोग उन्हें अपना निकट का स्नेही स्वजन मानकर अपने मन की गुप्त से गुप्त बात भी उन्हें लिखने में संकोच का अनुभव नहीं करते थे| परिणाम स्वरुप उनके पास हजारों पत्र प्रतिमाह आने लगे| बहुत वर्षों तक तो वह सभी प्रश्नों के उत्तर हाथ से लिख कर भेजते थे| फिर जब पत्रों की संख्या में वृद्धि हुई तब कुछ पत्रों के उत्तर टाइप करा कर और कुछ के हाथ से लिख कर भेजते थे| उन्ही सहस्त्रो सहस्त्रो पत्रों में से इस पुस्तक में 203 पत्र हैं जो अभी तक प्रकाशित नहीं हुए थे| पत्रों को पराया लोग अपनी वस्तु मानते हैं अतः प्रकाशित करने की अनुमति देने में हिचकते हैं| यह सभी प्राय: साधकों को को उनकी व्यक्तिगत बातों के उत्तर में लिखे गए है|
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