‘तीर्थी कुर्वन्ति तीर्थाणि’ यह क्या चीज है ? महात्मा लोग जिन स्थानों पर रहे, वहां देवरागमन हुआ, भगवत चर्चा हुई, संतो के ज्ञान सत्र हुए वहां वहां पर वायुमंडल में, जल में, आकाश में, धूलि कणों में, वृक्षों में सब जगह एक महान सात्विकता भर गयी| उस सात्विकता ने उस भूमि को, उस जल को वहां के वातावरण को पवित्र करने वाला बना दिया तो उसका नाम हो गया ‘तीर्थ’| गीता वाटिका ऐसा ही एक तीर्थ स्थल है जो गोरखपुर रेलवे स्टेशन से लगभग 3 किलोमीटर दूर स्थित है| गीता वाटिका भाई जी की तपोभूमि है जहां से वे 35 वर्ष की दीर्घकालीन तपश्चर्या, ऋषि-मुनियों की तरह सात्विक और समर्पित जीवन से सतत साधनारत रहे|
भाई जी श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार संपादक ‘कल्याण’, गीताप्रेस, गोरखपुर के एकांत निवास के लिए गीता वाटिका का क्रय किया गया था| श्री भाई जी वैशाख पूर्णिमा सं. 1991 वि. (सन 1934) यहां रहने लगे थे| तब से अनेकों संत. महात्मा, साधक, विद्वान व साहित्यकार उनके साथ रहे और यहीं से ‘कल्याण’ का संपादन कार्य होता| सन 1936 में यहां 1 वर्ष पर्यंत अखंड कीर्तन हुआ जिसमें देश भर से संत महात्मा पधारे थे| तब से यहां की शोभा निराली-दिव्य हो गयी|
यहां का वातावरण शांति प्रदायक है|वाटिका में राधा कृष्ण साधना मंदिर नागर शैली में निर्मित एक विशाल भव्य मंदिर है जिसमें भगवान श्री राधाकृष्ण,श्री सीताराम,श्री शंकर पार्वती के अलावा श्री गणेश जी, श्री हनुमान जी,भगवान सूर्यदेव,मां दुर्गा,भगवान विष्णु लक्ष्मी एवं मां त्रिपुरा सुंदरी की भव्य मूर्ति प्रतिष्ठित है|साथ ही अनवरत प्रार्थनारत श्रीभाई जी एवं उनकी जीवनसंगिनी मां रामदेई पोद्दार की मूर्ति है|इनकी शास्त्रोक्त रीती से नित्य पूजा अर्चना होती है|सायंकालीन आरती बहुत ही भावुक होती है जिसमें भक्तगण सोल्लास भाग लेते हैं|मंदिर के पार्श्व में अखंड संकीर्तन मंडल है जहां भाई जी द्वारा प्रारंभ किया गया नाम संकीर्तन सन 1968 से अनवरत चलता रहता है जिससे वातावरण बड़ा ही सात्विक रहता है|मंदिर के पीछे वह स्थल है जहां भाई जी को देवर्षि नारद जी एवं महर्षि अंगिरा के दर्शन हुए थे|आजकल उस स्थान पर एक सुंदर मंदिर बना है इसमें देवर्षि नारद जी एवं महर्षि अंगिरा की मूर्ति प्रतिष्ठित है|यह स्थान साधकों को आकर्षित करता है|
मंदिर के दाहिनी ओर भाई जी की पावन समाधि है|जिस चबूतरे पर भाई जी ने नश्वर शरीर का अंतिम संस्कार हुआ था वही उनके पार्थिव शरीर के अवशेष सुरक्षित हैं|उन्हें एक सुंदर पारदर्शी आवरण से आच्छादित कर दिया गया है जिससे वर्षा आदि का उन पर कोई प्रभाव न हो सके|बगल में मां की समाधि एवं राधा बाबा की समाधि है|बाबा की समाधि को एक मंदिर का रूप दे दिया गया है|जिसमें उनकी मूर्ति प्रतिष्ठित है जो अनवरत भाई जी के समाधि को निहारा करती है|यह एक बात का स्मरण कराती है कि बाबा भाई जी के स्वरूप को समझ कर जिस प्रकार उनको सचल वृंदावन मानकर उनके संग रहने का अखंड व्रत ले लिए थे यहाँ तक कि भाई जी के समाधि के पास ही अपना शेष जीवन व्यतीत करने का निश्चय कर रखे थे| भाई जी की समाधि के बगल में बाबा द्वारा स्थापित श्री गिरिराज परिक्रमा है,जहा आज भी भक्तगण परिक्रमा करते रहते हैं|
मंदिर के प्रांगण में स्थित भवन में वह पावन कक्ष है जिसमें प्रस्फुटित दिव्य वाणी को समग्र विश्व मैं हिंदू धर्म,संस्कृति तथा तत्व विवेचन की गरिमा को पुनः प्रतिष्ठित करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ|वर्षों तक पराया 18 घंटे साधन में रत रहने वाले कर्मयोगी, दिव्य भगवत प्रेम की रसधारा बहाने वाले प्रेमी भक्त एवं मां भारती के ज्ञानकोश को अक्षय बनाने वाले ज्ञान-वारिधि इस में निवास किया है|इस कक्ष में भाई जी को अपने परमात्मा के अगणित बार दर्शन हुए हैं प्रेमाला हुआ है और प्रिया प्रियतम की प् रसमई मधुर लीला में नित्य निमज्जित रहते थे इस कमरे में भाई जी द्वारा उपयोग मेल लाई जाने वाली सामग्री सुरक्षित है जिसके दर्शन के लिए लोग दूर दूर से आते हैं|
श्री राधा बाबा ने कहा है-‘इस गीता वाटिका की महिमा श्री वृंदावन धाम के समान ही है इसमें 35 वर्षों से अधिक काल तक रसराज महाभारत के युग्मरूप से भावित श्री पोद्दार महाराज ने निवास किया है|संत रूप में जो लीला श्री पोद्दार जी के शरीर में बैठकर नंदनंदन श्रीकृष्ण ने की है और उस शरीर से संबंधित जो एक एक वस्तु है,उनके कार्य के उपयोग में आने वाली छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी जो सामग्री है,वह सब बृज भावापन्न है|वह उन के बाद में भी हमें उपलब्ध हो रही है| यह भूमि भी ज्यों की त्यों विद्यमान है,जिसके कण कण उनके पद चिन्हों से अंकित है|’
भाई जी के पावन कक्ष से निकलने वाली ‘प्रसीद में नमामि ते पदाब्ज भक्ति देहि में’की वाणी आगंतुकों को शांति प्रदान करके उन्हें प्रेम भक्ति के मार्ग पर अग्रसर होने के लिए प्रेरित करते रहती है|
गीता वाटिका में भाई जी की परिवर्तित राधाष्टमी महोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है|जिसमें सम्मिलित होने के लिए सुदूर स्थानों से भक्त,साधाकगण आते हैं| आगंतुकों की सुविधा हेतु व्यक्तिगत अतिथि भवन है|