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श्रीमद्भागवत के दशम स्कंध में वेणुगीत के बाद 23 वें अध्याय में यज्ञ पत्नियों का प्रसंग है| श्री भाई जी ने प्रेमी जनों के आग्रह से एक बार प्रेमवती यज्ञ पत्नियों के इस प्रसंग पर अक्टूबर 1963 ई. में कई दिनों तक कथा की थी| यज्ञ पत्नियों का ह्रदय श्री कृष्ण प्रेम से भरा था और उनके संग से उनके पतियों एवं स्वजनों का भी ह्रदय श्री कृष्ण प्रेम से भर गया था| इस कथा में सिध्दांतपक्ष एवं लीला पक्ष दोनों का समावेश होने से कथा बड़ी रोचक, मधुर एवं ह्रदय स्पर्शी है| श्री भाई जी की वाणी में ऐसा ओजस्व एवं मधुरता भरी रहती थी जो श्रोताओं के हृदय को छू देती थी| प्रेमी जनों का कई दिनों से यज्ञपत्नियों पर कृपा के प्रसंगों को पुस्तकाकार करने का आग्रह रहा - भगवत कृपा से यह कार्य हो गया है| इन प्रसंगों को लिपिबद्ध करने का श्रेय हमारे श्री व्रजदेव जी दुबे को है|
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