संतप्रवर परम श्रद्धेय भाईजी हनुमान प्रसाद जी पोद्दार द्वान्द्वातित गुणों से ओतप्रोत थे| जहां एक और वे संसार से सर्वथा अलिप्त थे, घंटो भाव समाधि में लीन रहते थे – दिव्य लीलाओं में अवगाहन करते रहते थे – यहां तक कि उन्हें अपने शरीर की भी विस्मृति हो जाती थी – वहीं दूसरी और समाज के गिरते हुए स्तर को देखकर उनके हृदय में गहन वेदना जागृत हो जाती थी| चरित्र की गिरावट, सनातन धर्म के प्रति अनास्था, परमार्थ के नाम पर पाप, पतन में उत्थान के भ्रम आदि रूपों में मानव के पतन की दयनीय दशा को देखकर उनका ह्रदय द्रवित हो उठता था और समय-समय पर चेतावनी के रूप में अपने विचार ‘कल्याण’ में प्रकाशित कर देते थे| भाई जी की इस प्रकार की कुछ लेखकों इस पुस्तक में संग्रहित किया गया है|
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