यह परम पूज्य भाई जी के सम्पूर्ण साहित्य में से संकलित अनके अमृत वचनों का संग्रह है जो प्रत्येक दिनांक के रूप में प्रतिदिन हमारे जीवन में नया प्रकाश लायेगा| यह एक कैलेंडर के रूप में प्राप्त है |
श्री भाई जी के श्री मुख से नि:सृत वाणी को लिपिबद्ध करने का प्रयास भगवत्कृपा से किया है| इसमें सदाचार, ज्ञान, वैराग्य, भक्ति और प्रेम के उज्जवलतम स्वरुप का वर्णन बड़े ही सरल, सरस और बोधगम्य भाषा में हुआ है| हमें आशा और पूर्ण विश्वास है कि इसका अध्ययन-मनन लौकिक लाभदायी तो होगा ही साथ ही पारलौकिक पथ पर अग्रसर लोगों का पथ-प्रदर्शन अवश्य होगा|
जीवन में शाश्वत शांति एवं अखंड आनंद प्राप्त करने के लिए रस-सिद्ध-संत- भाई जी श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दार प्रवर्तक संपादक - 'कल्याण' ने जो सामग्री प्रदान की है, उसी का एक एक और लघु-संग्रह आपके हाथों में देते हुए प्रसन्नता को अनुभव हो रहा है| वे जिस उच्च अध्यात्मिक भागवती स्थिति में स्थित थे, उसीका परिणाम था कि उनकी लेखनी एवं मुख से नि:सृत प्रत्येक मानव मात्र का मंगल करने में समर्थ है|
इस पुस्तक में श्री भाई जी ने श्रीमद्भागवत के दशम स्कंध के वेणुगीत पर जो प्रवचन माला दी थी उसीका लेखबद्ध रूप है| प्राय:उनके शब्दों को ज्यों का त्यों देने का प्रयास किया है |
श्रीमद्भागवत के दशम स्कंध में वेणुगीत के बाद 23 वें अध्याय में यज्ञ पत्नियों का प्रसंग है| श्री भाई जी ने प्रेमी जनों के आग्रह से एक बार प्रेमवती यज्ञ पत्नियों के इस प्रसंग पर अक्टूबर 1963 ई. में कई दिनों तक कथा की थी| यज्ञ पत्नियों का ह्रदय श्री कृष्ण प्रेम से भरा था और उनके संग से उनके पतियों एवं स्वजनों का भी ह्रदय श्री कृष्ण प्रेम से भर गया था| इस कथा में सिध्दांतपक्ष एवं लीला पक्ष दोनों का समावेश होने से कथा बड़ी रोचक, मधुर एवं ह्रदय स्पर्शी है| श्री भाई जी की वाणी में ऐसा ओजस्व एवं मधुरता भरी रहती थी जो श्रोताओं के हृदय को छू देती थी| प्रेमी जनों का कई दिनों से यज्ञपत्नियों पर कृपा के प्रसंगों को पुस्तकाकार करने का आग्रह रहा - भगवत कृपा से यह कार्य हो गया है| इन प्रसंगों को लिपिबद्ध करने का श्रेय हमारे श्री व्रजदेव जी दुबे को है|
यह परम पूज्य भाई जी के सम्पूर्ण साहित्य में से संकलित अनके अमृत वचनों का संग्रह है जो प्रत्येक दिनांक के रूप में प्रतिदिन हमारे जीवन में नया प्रकाश लायेगा| यह एक कैलेंडर के रूप में प्राप्त है |
manish joshi –
श्री हरि