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श्री भाई जी के जीवन काल में ही उनकी प्रतिष्ठा एवं लोकप्रियता एक सच्चे पथ प्रदर्शक संत के रूप में हो गई थी| जन जन के मानस पटल पर उनके मधुर अलौकिक व्यक्तित्व का इतना अधिकार हो गया था कि वे उन्हें अपना अत्यंत निकट का स्नेही स्वजन मानते थे| इसके फलस्वरूप वे लोग अपने मन की गुप्त से गुप्त बाद भी उन्हें लिखने में संकोच का अनुभव नहीं करते थे| इसका परिणाम यह हुआ कि श्रद्धालुओं, साधकों, आत्मीय जनों तथा कल्याण के पाठकों के हजारों पत्र प्रतिमाह आने लगे| कोई अपनी अध्यात्म साधना की गुत्थियाँ एवं विघ्नों के संबंध में पत्र निर्देश चाहता, कोई कर्मकांड के विषय में जानकारी चाहता, कोई व्यवसाय की समस्या पर राय चाहता, कोई पारिवारिक समस्या के विषय में मार्गदर्शन चाहता, कोई राजनीतिक विषय में, कोई विधवा विवाह, बाल विवाह आदि के विषय में, कोई अपने दांपत्य जीवन या अवैध प्रेम के संबंध में मत जानना चाहता| पत्रों को सर्वदा वे स्वयं खोलते और पढ़कर अलग अलग वर्गों के लिफाफे में रख देते| पत्रों का उत्तर देने की उनकी अद्भुत शैली थी| वह बड़ी गंभीरता एवं सावधानी से उत्तर देते और इसलिए उनके पत्रों का जादू सा प्रभाव पड़ता| मेरा विश्वास है कि जो भाई-बहन इन पत्रों को मनन पूर्वक पढेंगे तथा इन में कही हुई बातों को अपने जीवन में उतारने का प्रयत्न करेंगे उन्हें निश्चय ही व्यवहार एवं परमार्थ में विशेष सफलता प्राप्त होगी|
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manish joshi –
श्री हरि