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भगवान की दिव्य लीलाओं का दर्शन और भावसिंधु में अवगाहन श्री भाई जी के जीवन का स्वभाव बन गया था|
देख-देख मैं प्रभु को, प्रभु की लीला को पता आल्हाद |
नित्य-नवीन मधुरतम रसका लेता मैं दुर्लभ आस्वाद ||
ऐसे लीला-विहारी संत से भगवान की लीला-कथाओं को सुनाने का आग्रह साधकों, सज्जनों का बार-बार रहता| कुछ प्रेमी जनों के आग्रह पर भाई जी ने 2 नवंबर 1963 से भगवान श्रीकृष्ण की 'कालियनागपर कृपा' लीलाकथा को कहना प्रारंभ किया| उस प्रवचन में ऐसा रस-प्रवाह बहा की श्रोतागण आनंदमग्न होकर अपने को धन्य मानते| इस प्रवचन की श्रंखला इस पुस्तक में है| अप्रतिम संत श्री भाई जी के लीला-कथा प्रवचनों में ऐसा प्रतीत होता था कि यह आंखों देखा सद्य: विवरण है| श्रद्धालु साधकों के आग्रह से इस लीलाकथा प्रवचन को लिपिबद्ध करने का कार्य भगवत कृपा से किया गया| इन प्रवचनों को लिपिबद्ध करने का श्रेय श्री व्रजदेवजी दुबे को ही है| इन्होंने पूज्य श्री भाई जी के अनेकों प्रवचनों को लिपिबद्ध किया है| आशा है विज्ञ पाठकों को इसके पठन-मनन से लीला-कथा श्रवण का आनंद, सत्संग लाभ और भगवत प्रेम पथ पर अग्रसर होने की प्रेरणा और मार्गदर्शन प्राप्त होगा|
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manish joshi –
श्री हरि