भगवत कृपा से पूज्य श्री राधा बाबा की प्रिय पुस्तक ‘परमार्थका सरगम’ के पुनर्प्रकाशन का शुभ अवसर आया है| अब यह पुस्तक 37 वर्ष पूर्व प्रकाशित हुई थी और बाबा ने अपने स्वजनों में इसका वितरण किया था| इसी तरह पूज्य बाबा ने दो पुस्तिकाएं ‘विलक्ष्ण प्रेम और विलक्षण का कृण’ तथा ‘पांच पगडंडियां’ भी प्रकाशन कराकर अपने स्वजनों को विकृत की थी| यह दोनों पुस्तकें भी इसी पुस्तक में परिशिष्ट एक और दो में सम्मिलित कर ली गई है जिससे इस पुस्तक का कलेवर और विस्तृत हो गया है| पूज्य बाबा ने जनवरी 1965 एवं जनवरी 1978 में पुनः मान लिया था| उस समय एकत्रित हुए भाई-बहनों के सामने मौन के पूर्व उन्होंने कुछ दिन उपदेश दिए थे| उन दोनों समय के उपदेशों का सारांश भी इस पुस्तक के अंत में परिशिष्ट 3 के रुप में सम्मिलित किया गया है| इन सभी से पुस्तकों की उपादेयता निश्चित ही बढ़ गई है| आशा है पाठक इन सभी से लाभ उठाकर अपने जीवन को परमार्थ पथ पर आगे बढ़ाने का प्रयास करेंगे|
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